Uncategorized

श्री चित्रगुप्त अवतरण दिवस चैत्र पूर्णिमा 12-13 अप्रैल को मनाया जायेगा।*

श्री चित्रगुप्त भगवान के अवतरण की कथा श्री चित्रगुप्त भगवान का पृथ्वी पर उज्जैन के क़रीब शिप्रा नदी के तट पर उतरने से पहले घटित हुई। स्मरण रहे कि श्री चित्रगुप्त भगवान का अवतरण देवलोक में भगवान ब्रह्मा
के समक्ष उनकी वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ। श्याम वर्ण के चार भुजाओं वाले श्री चित्रगुप्त भगवान की अवतरित छवि नीचे कल्पित है। उनके एक हाथ में तलवार है, दूसरे में वेद है, तीसरे में कलम तूलिका है, और चौथा हाथ कल्याण हेतु आशीष देता हुआ है। इसी रूप में भगवान ब्रह्मा से श्री चित्रगुप्त जी ने अपना परिचय माँगा। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें उत्तर दिया, “आपकी छवि बरसों से साधित मेरी तपस्या के दर्मियान गुप्त से मेरे चित्त में निर्मित होती रही, इसीलिए आपका नाम नाम चित्तगुप्त हुआ।” ब्रह्म जी ने आगे कहा की उनके संतान कायस्थ कहलायेंगे, चुकि वह (श्री चित्त गुप्त) श्री ब्रह्म की ‘काया में वर्षों अस्त’ यानि विराजमान रहे। श्री ब्रह्म जी ने श्री चित्रगुप्त जी की भूमिका बतौर पाप-पुण्य लेखाकार, न्यायाधिकारी, और दंडाधिकारी तय किया। कालांतर में चित्तगुप्त शब्द का अपभ्रंश से चित्रगुप्त नाम प्रचलित हो गया। 2025 में श्री चित्रगुप्त भगवान का अवतरण दिवस 12-13 अप्रैल (चैत्र पूर्णिमा) के दिन पड़ेगा।
श्री चित्रगुप्त भगवान की अवतरण कथा माण्डव ऋषि द्वारा यम को दिये हुए श्राप से जुड़ी है। ब्रह्मांड की श्रृष्टि के प्रारंभ में भगवान ब्रह्मा ने दक्षिण स्थित मृत्युलोक और समस्त प्राणियों के पाप-पुण्य के निर्धारण का कार्यभार यमदेव को सौंपा था। पर कुछ ही समय में यमदेव से अपने कार्य निर्वाहन में भारी चूक हो गई। यमदेव ने अल्प समझ से माण्डव ऋषि को ग़लत मृत्यु दंड देने का प्रयास किया। जिससे मांडव ऋषि कॉपित हो गये और यमदेव को श्राप दे डाला। इसी श्राप के पश्चात यम को यह आभास हो गया कि करोड़ों प्राणियों के पाप-पूर्ण का लेखा जोखा से दूभर कार्य भार वह किसी पर्यवेक्षक के अभाव में अकेले नहीं उठा पायेंगे। श्रापित यम भगवान यम के पास गये और उन्हें एक योग्य पर्यवेक्षक प्रदान करने का आग्रह किया। इसी योग्य पर्यवेक्षक की तलाश में श्री ब्रह्म जी ने उपरोक्त वर्णित वर्षों की तपस्या की। तत्पश्चात् देवलोक में श्री ब्रह्म जी की सम्पूर्ण काया से चार भुजा वाले श्री चित्तगुप्त भगवान का अवतरण हुआ, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है।श्री ब्रह्म जी के ही निर्देश पर श्री चित्रगुप्त पृथ्वी पर शिप्रा नदी के तट पर अवंति (उज्जैन) में उतरे। यहीं वह सृष्टि-चालन के विधि-विधान में पांडित्य प्राप्त करने के लिये निकट स्थित कायथा गाँव के लिए तत्काल प्रस्थान किया। यहाँ शिप्रा नदी के किनारे वर्षों की तपस्या उपरांत, और सृष्टि को संचालित करने के विधि विधान में पांडित्य प्राप्त करने के बाद, श्री ब्रह्म जी ने दो महिलाओं से श्री चित्रगुप्त जी का विवाह सम्पन्न करवाया। इसी जगह पर श्री चित्रगुप्त जी के 12 पुत्रों ने जन्म लिया। अपने इन 12 पुत्रों को श्री चित्रगुप्त जी ने उस समय के श्रेष्ठतम गुरुकुलों में शिक्षा के लिए भेजा। शिक्षा प्राप्त करने के बाद ये पुत्र कायथा लौटे जहां उनका विवाह श्री चित्रगुप्त ने नाग वंशी महिलाओं से कराया। तत्पश्चात श्री चित्रगुप्त ने अपनी-अपनी यश और समृद्धि की ध्वजा फैलाने के लिए इन पुत्रों को पत्नियों सहित भारत के अलग-अलग दिशाओं में विदा किया। पृथ्वी पर गृहस्थी की ज़िम्मेवारियों से निपट कर श्री चित्रगुप्त अपने मूल स्थान को अपने मूल भूमिका के निर्वाह के लिए लौट गये। उपरोक्त पर्व का व्याख्यान कायस्थ इनसाइक्लोपीडिया के महाआख्यान (Grand Narrative) में वर्णित है। उज्जैन के समीप स्थित ‘कायथा’ इस तरह कायस्थों से जुड़े महाआख्यायनों और इतिहास का संगम है। कायथा से ही कायस्थों की बारहों उपजातियाँ भारत के अलग अलग हिस्सों में जा बसीं॥

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!