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शानी जी ने अपने समय के सच को रचनाओं में दर्ज किया था, क्या आज के रचनाकार इसमें सफ़ल है?

कांकेर। शानी जी का विपुल लेखन बस्तर संभाग की धरा पर 50 वर्ष पहले हुआ था उन्होंने जगदलपुर में अध्ययन के बाद देश दुनिया का साहित्य पढ़ कर अपनी लेखनी से बस्तर के जनजीवन को रचनाओं के माध्यम से दुनिया के समक्ष उजागर किया। इस तरह के उदगार कांकेर के शिक्षा महाविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी तथा पोस्टर प्रदर्शनी के कार्यक्रम में व्यक्त किए गए जो कि शानी फाउंडेशन एवं जनवादी लेखक संघ द्वारा 28 मई को आयोजित किया गया था। 16 मई 1933 में बस्तर में जन्मे प्रख्यात रचनाकार गुलशेर खां शानी पर केंद्रित पोस्टर प्रदर्शनी का औपचारिक उद्घाटन शासकीय शिक्षा महाविद्यालय कांकेर की प्राचार्या डॉ पूर्वा शर्मा द्वारा किया गया। शानी जी के बस्तर में गुजारे गए दिनों के साथ साथ भोपाल और दिल्ली में पुरस्कारों, साहित्यकारों और परिजनों के साथ की उनकी तस्वीरें इस पोस्टर प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई थी। शानी फाउंडेशन, दिल्ली के सदस्य पीसी रथ द्वारा शानी जी की बस्तर में शुरुआत से ले कर उपन्यास, कहानियां, संस्मरण निबंध व शानी फाउंडेशन के बारे में जानकारी दी गई। कार्यक्रम संयोजक डॉ एस आर बंजारे ने कहा बेहतर  साहित्य सृजन के लिए बड़ी बड़ी डिग्रियों की जरूरत नही पड़ती, अच्छी भाषा, बेहतरीन समझ और देश दुनिया को संवेदनापूर्ण ढंग से देखने तथा लेखन हेतु समर्पण से ही साहित्य सृजन संभव हो पाता है।

प्रगतिशील लेखक संघ के जिला सचिव अनुपम जोफर ने कांकेर नगर में शानी जी की बहन की शादी पुराने बाशिंदे अशरफ गुरुजी से होने का जिक्र करते हुए, उनके परिजनों की जानकारी दी। शानी जी के विभिन्न रचनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि शानी ने निर्धन और शोषित वर्ग को अपनी रचना के केंद्र में रखा 1960 के दशक में मुस्लिम समाज के मध्यमवर्ग के जीवन शैली को प्रस्तुत किया साथ ही समाज के मध्य विद्यमान कुरीतियों, रूढ़िवादिता को भी बेबाकी से उठाया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे रचनाकार सुरेश चंद्र श्रीवास्तव ने पोस्टर प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों को शानी जी के जीवन के सभी रंगों को, रचनाओं की परिस्थितियों को प्रदर्शित करने वाला बताया। शानी जी की युवावस्था, प्रकृति के बीच, अबूझमाड़ में, आदिवासी समुदाय के साथ, रिसर्च स्कॉलरों के साथ, महानदी में परिवार के साथ स्नान, परिजनों के साथ मस्ती के क्षण,बड़े साहित्यकारों के साथ, भोपाल दिल्ली में पुरस्कार ग्रहण करने की तस्वीरों में उनका संपूर्ण जीवन और कृतित्व अभिव्यक्त होता है। शिवसिंह भदौरिया ने शानी जी की रचना एक लड़की की डायरी का जिक्र करते हुए गरीब लड़की के रोज़ के संघर्ष को रेखांकित किया। प्रख्यात आलोचक डॉ नामवर सिंह के शानी जी के विषय में उस समय दिए गए बयान का जिक्र करते हुए उन्हें 1960 से 70 के दशक का देश का सबसे चमकदार सितारा बताया था। प्राध्यापक नवरतन साव में कहा कि उनके विपुल साहित्य का उचित मूल्यांकन नहीं हुआ तथा उनको हिंदी साहित्य में अपेक्षित उपयुक्त क़द और स्थान नही मिला। प्रो. नवरतन साव ने शानी की रचनात्मक क्षमता को किसी अन्य साहित्यकारों से कम नहीं आंकते हुए कहा कि उन्हें साहित्यिक प्रतिष्ठा नहीं मिल पाया।

राजेश कुमार शुक्ला ने शानी की रचनाओं को बस्तर की धरोहर बताया तथा उनके काला जल जैसे लेखन को बस्तर के कस्बे के जीवन का ऐतिहासिक दस्तावेज बताया। उनकी रचनाओं को प्रदेश के पाठ्यक्रमों में होना चाहिए, इसके लिए फाउंडेशन पहल कर सकता है। संगोष्ठी में संतोष श्रीवास्तव सम तथा रिजेंद्र गंजीर ने भी विचार रखे। अंत में संयोजक डॉ एस आर बंजारे ने आभार प्रदर्शन के दौरान जानकारी दी कि शानी जी की रचनाओं को बस्तर वि वि के हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में शामिल करवाने हेतु कुछ वर्षों पूर्व सहमति बन चुकी थी किंतु जगदलपुर में स्थानीय स्तर पर किताबों की उपलब्धता नही होने के कारण कमिटी ने रचनाओं को शामिल नही किया था। शानी फाउंडेशन के इस आयोजन से गुलशेर खां शानी के विपुल साहित्य की ओर एकबार फिर पाठकों का ध्यान गया और संकल्प लिया गया कि बस्तर को राष्ट्रीय साहित्य में दर्ज कराने वाले शानी जी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनको उपयुक्त स्थान दिलाने के लिए हम सब प्रयास करते रहेंगे।

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