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“पौधों के औषधीय,पर्यावरणीय एवं धार्मिक महत्व”विषय पर संगोष्ठी व निबंध लेखन प्रतियोगिता हुई

एलोपैथिक औषधियों के दुष्प्रभावों से बचने प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाना आवश्यक

रिपोर्टर देवेन्द्र कुमार जैन भोपाल मध्यप्रदेश
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की गतिविधि इकाई फ्रेंड्स ऑफ सोसायटी एवं भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में ‘वेदों में वर्णित पौधों का औषधीय, पर्यावरणीय एवं धार्मिक महत्व’ विषय पर संगोष्ठी एवं निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय अग्रवाल ने छात्रों से वेदों की ओर लौटने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि पौधों में भी संवेदनाएँ होती हैं, वे सुख-दुःख के भावों का अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि पौधों से संवाद करना न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, अपितु अवसाद, निराशा और आत्मघाती प्रवृत्तियों से भी मुक्ति दिला सकता है।मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. सुधीर शर्मा ने भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पद्धति ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग के माध्यम से समग्र कल्याण की ओर ले जाती है। उन्होंने कहा कि शरीर को ‘मंदिर’ मानने की अवधारणा पर आधारित हमारी पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली न केवल रोगनिवारण करती है, बल्कि जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण भी विकसित करती है। एलोपैथिक औषधियों के दुष्प्रभावों से बचने हेतु प्राकृतिक चिकित्सा और वैदिक ज्ञान को अपनाना आवश्यक है। समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. तैयबा खातून ने प्रसिद्ध साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी के निबंध “गेहूँ और गुलाब” का उल्लेख करते हुए कहा कि जीवन में भौतिक प्रगति के साथ-साथ सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों की सुगंध आवश्यक है। उन्होंने जीवन को पुष्पित और सुगंधित बनाने के लिए मूल्यनिष्ठ सोच को अपनाने पर बल दिया।कार्यक्रम का कुशल संचालन क्लब की वालंटियर छात्राओं किरण रजक, सपना मुसावत, अंजली अग्रवाल, मुस्कान नन्हैते, एलिस तिर्की एवं हफ़्सा ज़माँ ने उत्साहपूर्वक किया। निबंध लेखन प्रतियोगिता में 45 छात्राओं ने भाग लिया, जिसका संयोजन डॉ. उषा कुकरेती के निर्देशन में किया गया।

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